लेकिनउससेभयकहांमिटा? निर्भय कहां बने और यह भय तो दिनों दिन आपकी संतान को इससे दस हजार गुना ज्यादा होगा कि बाजार में जाने के लिये भी सोचना होगा, आने वाले समय में। आप उनको क्या देकर जायेंगे क्योंकि विज्ञान उनको कुछ दे नहीं पा रहा है। यहआपसबदेखरहेहैं。 यहां पर लोगो ने मुझे बताया की वह व्यक्ति पच्चीस अंगरक्षक साथ लेकर चलता है, यह बीस लेकर चलता है, यह कैसा जीवन है? जोस्वतंत्रतासेघूमहीनहींसकता। निर्भयतासेगंगा-स्नाननहींकरसकते। यह भययुक्त जीवन किस काम का और यह भययुक्त जीवन, निर्भय जीवन केवल काल पुरूष साधना के माध्यम से आ सकता है। इसलिये आज में महामृत्युंजय प्रयोग करा रहा हूँ तो कल मैं उस प्रयोग को भी कराऊँगा जो यहां की नगरी का रक्षक कालभैरव है।
भगवान विश्वनाथ के दर्शन तब तक अधूरे कहे जाते हैं, जब तक कालभैरव के दर्शन नहीं किये जाते। ऐसे क्यों कहा गया कि काल पुरूष के दर्शन, काल भैरव के दर्शन होने ही चाहिये। जब तक वो नहीं होगा, तब तक आदमी निर्भय नहीं बन सकता और दर्शन से आप निर्भय नहीं बन सकते। वहतोअपनेआपमेंसमाहितहोनेकीक्रिि हमहाथजोड़देंकालभैरवको、उससेक्याह मैंआपकोखुदाकहूँ、आपमुझेअल्लाहकहद यहजीवननहींहै。 ऐसाहोकिनिर्द्वन्द、निशि्ंचतभावसे。 कौनबढ़ेगा? मेमेमेशिषशिषशिषवेबढ़बढ़आपआपमेमेमे現ससबैठे、 दूसरे में हिम्मत और क्षमता नहीं है और जब आप बढ़ सकेंगे तो आगे का समाज भी बढ़ सकेगा।
आने वाला समय अपने आप में एक बेचैनी भरा, दुःख भरा, दर्द भरा, कष्ट भरा, भय युक्त, चिन्ता युक्त सा है। जहांआनन्दनहींहोगामस्तीनहींहोगी। आपखुददससालपहलेऔरआजकाजीवनदेखले。 कितनाबड़ापरिवर्तनहोगया。 मैंनेनेहरूजीकासमयदेखाहैजहांकोईई गांधीजीकोदेखाहैजोबिनाअंगरक्षकके चालीस-पैंतालीस साल पहले की बात है और आज कोई एम-एल-ए भी है तो साथ में दस अंगरक्षक राइफल लिये हुये चलते हैं।
चालीससालमेंकितनाबड़ापरिवर्तनहोगय एकभययुक्तसमाजबनगयाहै। जोभयमुक्तथाऔरउसमेंवापिसकैसेपरि यह भी हो सकता है कि हम उन साधानाओं को करें जो हमारे पूर्वजों ने दी हैं। यह एक छोटी साधना नहीं है, क्योंकि यह एक बड़ी उग्र और प्रचण्ड साधना है। जो अन्दर का सब कुछ, जो कई-कई जन्मों के पाप, कई-कई जन्मों के श्राप, कई-कई जन्मों की जो हमारी न्यूनताये हैं जो हमने गालियां दी होंगी, मक्कारी की होगी, जो झूठ बोला होगा, छल किया होगा और उसे भस्मकौनकरपायेगा? औरवोसमाप्तनहींहोगातोहमस्वच्छकै वो काल भैरव के माध्यम से ही बन सकते हैं और कोई साधना है ही नहीं। जबनिर्मलबनसकेंगेतबहीतोबहुतकुछ ऐसा क्यों कहते हैं कि विश्वनाथ के दर्शन करें तो काल भैरव के दर्शन अनिवार्य हैं। उसकेबिनाजीवननिर्द्वन्दनहींबनसक क्या भगवान शिव के दर्शन से जीवन निर्द्वन्द नहीं बन सकता, काल भैरव को बीच में क्यों लाया गया? इसलियेकिइससेपहलेकाहमाराजीवनभीअध वहअधूरापनकैसेमिटेगा? समयतोबीतताजारहाहै。 वह केवल पूर्ण रूप से गुरू के चरणों में लिपटने से ही हो सकता है। आपने भी गुरू-शिष्य की मधुरता, प्रेम को देखा नहीं, एहसास नहीं किया, आपने नकली प्रेम किया, आप में कभी तड़प पैदा हुई नहीं, आपके हृदय में जज्बात् पैदा नहीं हो सके और न ही हो सकेंगे क्योंकि कालिख भरी दीवारों पर सफेदी पैदा नहींकीजासकतीऔरमैंवहीप्रयत्नकरर इसलियेआपकोबार-बारबुलारहाहूँ। शशचिनなまりग#€兄弟जज愛औऔ現。 हरहालतमेंहोगीक्योंकिमैंऐसाकरूं。 जीवनकेहरक्षेत्रमेंमैंपूर्णताके चाहे वह साधना का हो, चाहे वह साहित्य का क्षेत्र हो, चाहे वह संगीत का क्षेत्र हो, चाहे विद्या का क्षेत्र हो, चाहे तंत्र का, चाहे मंत्र का हो, चाहे दर्शन का हो, चाहे मीमांसा का हो। इन सब में मैंने अपने आप में पूर्णता प्राप्त की है, सफलता प्राप्त की है तो इस बार इस परीक्षा में भी सफलता प्राप्त करूँगा और आपको चिन्गारी नहीं, सूर्य के समान बना कर छोडूंगा, हर हालत में बना कर छोडूंगा।
कमीहोतीहैतोआपकाजीवनभयमुक्तनहीत गुरू जा रहे हैं और दौड़ कर के एकदम लिपट जायें, ऐसा नहीं हो पाता, क्योंकि आपने गुरू को समझा ही नहीं। आपनेअपनेआपकोहीनहींसमझातोगुरूको भगवान शिव को तो समझने में बहुत समय लगेगा, उससे पहले काल भैरव को समझना पड़ेगा क्योंकि बावन भैरव, एक-दो नहीं काल भैरव है, उनमत्त भैरव है, चैतन्य भैरव है, उनको शरीर में समाहित कर देना या तो अन्दर दोष रहेगा, श्राप रहेगा, पूर्व जीवन के पाप रहेंगे या अन्दर फिर भैरव स्थापन होंगे और भैरव का मतलब है सब कुछ स्वच्छ कर देना। गन्दगी को बाहर निकाल कर स्वच्छ कर देना, स्वयं को निर्भय बना देना, जहां सब कुछ देने की क्षमता प्राप्त हो सके और मैं दूंगा तो शाम को भी दूंगा, कल सुबह भी दूंगा और परसों भी दूंगा क्योंकि मैंने सुबह प्रवचन में यही बात कही है किइसबारमैंदेनेकेलियेहीआयाहूँ। हब愛uldआतबですबबなりでながりऐसなりहूँकिइसइसब現बसनसनसनसनसनसनसनसन対ध現。 स्टेज पर खड़ा करके नाचने के लिये कटिबद्ध होना जरूरी है, आपके पांव में थिरकन देना जरूरी है। आपकेहृदयमेंबेचैनीपैदाकरनाजरूरीह आप के अन्दर पूरा का पूरा काल पुरूष उतारना जरूरी है और जब भय ही उतर गया तो यमराज आयेगा कहाँ से? फिर वह गोली कौन से कारखाने में बनेगी जो आपके सीने को छलनी कर सके। फिरभयकहांसेआपायेगा? फिर कहीं गड़बड़ नहीं हो सकती, फिर निर्भयता से विचरण कर सकते हैं फिर मृत्यु हमारे पास भटक नहीं सकती। फिर जीवन का एक आनन्द पैदा हो सकेगा, क्योंकि हम काल को पकड़ सकेंगे और यह विशेष दीक्षाओं के माध्यम से ही सम्भव है। रास्तायहीहै。 आजभीऔभीभीपपप現पसस現सबなりबऔऔऔऔहजहजहज現हजहजहजするसपहलेभी
ऋषिवशिष्ठनेभीअपनीपत्नीकोदीक्ष उसने कहा मैं ब्रह्म को जानना चाहती हूँ मैं आपकी पत्नी हूँ और मैंने पच्चास साल आपकी सेवा की है, एक पति के रूप में। उसने कहा तुमने पति के रूप में सेवा कि है तुमने मुझे गुरू नहीं माना तो मैं तुम्हें दीक्षा दे ही नहीं सकता। तुम्हें शिष्य बनना पड़ेगा पहले तुम शिष्या बनोगी तो मैं तुम्हारे अन्दर वह ज्ञान, वह चेतना, वह काल पुरूष स्थापित कर सकूंगा जहां तुम्हारा हृदय मेरे साथ पूर्णता के साथ जुड़ सकेगा। गुरू-शिष्यकेरूपमें、पति-पत्नीकेर。 येदीक्षायेतोआजसेपच्चीसपचासहजारस कोईनयाउपकरणनहींहै。
सुबह मैंने बताया कि समुद्र में हजार नदियां मिल जाये तो भी समुद्र पूर्ण होता है और हजार नदियां निकल जाये तो भी समुद्र पूर्ण होता है। समुद्रपूर्णहैतोपूर्णहीरहेगा। नदियां सूख सकती है, गंगा सूख सकती है, यमुना सूख सकती है, सरस्वती सूख सकती है और बाकी नदियां सूख सकती है। उनका पानी कम हो सकता है, पर समुद्र का पानी कम नहीं हो पायेगा और मर्यादा का उल्लंघन भी नहीं कर पायेगा। जिस दिन समुद्र मर्यादा का उल्लंघन करेगा उस दिन मद्रास भी डूब जायेगा, मुम्बई भी डूब जायेगी, एक क्षण लगेगा बस! थोड़ासाबीसफुटआगेबढ़जायेबसखत्म। उसेइतनाहीकरनाहै。 इसलियेएक-एकक्षणकोपहचाननेकीआवश्य क्योंकि उतनी तपस्या का वेग आपके पास होना चाहिये और उतना वेग जब उत्पन्न हो सकेगा, जब हजार-हजार वाट की रोशनी आपके अन्दर उतारी जा सकेगी। वहदीक्षाओंकेमाध्यमसेहीसम्भवहोपा विशेषदीक्षाओंकेमाध्यमसेहीहोपायेत होनाचाहियेदेनेवालेव्यक्तित्व、परवव लेनेवालातोफिरभीमिलजायेगा、आजसेदसस देने वाला मिलेगा की नहीं मिलेगा यह कुछ कहा नहीं जा सकता और यह नहीं होगा तो आप खुद देख लेंगे चालीस साल बाद- बीस साल बाद कि देश का भविष्य क्या बना? हमकह果体थेなりथेथेなりकहकह現像ंखड़ेखड़ेगयेससなりससबするकहするकहするकहंखड़े、हम###−もうすकिसभाव-भूमिपरखड़ीहोपायेगी? कौनसेगुरूउनकेसामनेखड़ेहोपायेंगे? कुछपतानहींचलेगा。 इसलियेआपकेपाससमयहै、वक्तहैआपकेपा आपकेऔरमेरेबीचमेंएकसम्बन्धहैऔर
आपकेऔऔऔ因आपकेमेसमसमसमसमसम現家、तड़पकなりसमक現ッセ、बेचैनीकबेचैनी現。
अबतोवेगकेसाथबहनेकीजरूरतहै। अगर बीच से पेड़ टूट जायेंगे, पत्थर आयेंगे, मगर अब तो वेग के साथ बढ़ना ही पड़ेगा। घर अपनी जगह है, पत्नी अपनी जगह है, पति अपनी जगह है, बन्धु-बांधव सब कुछ है, सब अपनी जगह हैं। हमउनकोछोड़नहींपारहेहैं。 छोड़ेंगेभीनहीं。 मगर हम अपने आपके लिये क्या कर रहे हैं यह सोच नहीं पा रहे हैं और अगर वह नहीं है तो पांव पसार कर मर जाने में कोई बहादुरी नहीं है। राष्ट्रकोईआपकेसामनेझण्डेनहींझुक फिरकईबड़ीदुर्घटनायेघटनीघटितनही जबपैदाहुयेतबभीकोईबहुतबड़ीघटनान
मनुष्यइसबातकाएहसासनहींकरताहै। एहसास कर सकता है, एहसास तब कर सकता है जब आपके अन्दर हजार-हजार सूर्य स्थापित हो सके। खैर यह तो कल मैं काल भैरव प्रयोग के बाद ही उन विशेष दीक्षाओं के माध्यम से विस्तार दूंगा। उन विशेष दीक्षाओं का मतलब है आपके मन की इच्छा हो और वह आपको प्राप्त हो। उसकोविशेषदीक्षाकहतेहैं。
आपके मन की इच्छा हो, आप चाहें कि यह हो और वही हो मेरे अन्दर हजार सूर्य पैदा हो और वही हो जाये। मेरेअन्दरतड़पपैदाहोऔरहोजायें。 मैंगुरूसेएकाकारहोऊंऔरएकाकारहोजाय यहहोजाये、उसकोविशेषदीक्षाकहतेहैं。 यहसामान्यशब्दनहींहै。 यह सामान्य ध्वनि नहीं है और यह नहीं है तो आपका जीवन भी नहीं है। आपको गुरू की जरूरत है ही नहीं तो फिर आपको नौकरी की जरूरत है। फिर आपको चांदी के चन्द ठीकरों की जरूरत है, पैसों की जरूरत है। तबआपकोलालसा、धोखा、विश्वासघातदेनेऔरल यहजीवनकिसीकामकानहींहै。 यह जीवन मस्ती भरा नहीं है, खुमारी भरा नहीं है और यदि ऐसा जीवन नहीं है तो फिर आप उस आनन्द को भी प्राप्त नहीं कर सकते और वह आनन्द प्राप्त नहीं किया तो आने वाली पीढ़ी तो प्राप्त कर ही नहीं सकती, संभव ही नहीं है। क्योंकि चालीस साल-पचास साल पहले गंगा के किसी किनारे पर ऐसी कोई जगह नहीं थी, जहाँ दो हजार-चार हजार, पांच हजार उच्चकोटि के संन्यासी नहीं मिले। ऐसासम्भवहीनहींथा。 केवलपचाससालमेंक्याडिफरेंसआगया।
इसलिये कि हमने उनकी कद्र की नहीं और वे जंगल में जाकर रह गये। मजबूर हमने उनको किया क्योंकि हमने गुरू को पहचाना नहीं, एहसास नहीं किया, हमने उनके चरणों में मन्दिर देखा नहीं, भगवान शिव के दर्शन उनके चरणों में भी हो सकते थे। ब्रह्मके、विष्णुके、इन्द्रकेदर्शन पर आपने ऐसा इसलिये किया नहीं कि आपने आंसुओं से उनके पैरों को धोया ही नहीं। पानीसेधोया、आपआंसुपैदाकरनहींसकें। आपकीआंखेंभीगनहींसकीं。 आपशिष्यबननहींसके。 कमीआपमेंरही、उनकेचरणतोथेही। शिष्यमैंभीरहाहूँकोईआपअकेलेहीनन उसदर्द、उसएहसासकोमैंनेभीमहसूसकिि एहसास और उसकी बेचैनी को महसूस किया है और आज भी उस एहसास को पाले जा रहा हूँ। ऐसी बेचैनी, ऐसी चीज, वह सब कुछ देने के लिये तैयार है और आपके पांव ठिठक रहे हैं, रूक रहे हैं। मैंबड़ाआश्चर्यचकितहोजाताहूँकिक् इनकेपांवजहाँहैवहींरूकेहुएहै। यूजलैस、चीखना、चिल्लाना、बड़बड़ानाबेकार येजहाँहैंवहींरहेंगे。 यह जैसे हैं वैसे ही रह पायेंगे और मन में एक तड़प, वेदना फिर रह जाती है कि मैं क्या करूं? कैसेकरूं? कैसेसमझाऊं? कबसमझेंगे? कैसेसमझेंगे? किसतरीकेसेसमझेंगे? मैंनेविश्वासखोयानहींहै。
यह शास्त्रों में कहा है कि जो मृत्यु की ओर बढ़े हुये हैं उनको काल भैरव की दीक्षा नहीं दी जा सकती, प्रयोग नहीं करवाये जा सकते और नहीं करवाना चाहिये क्योंकि वे तो बढ़ रहे हैं मृत्यु की ओर और तुम काल भैरव को हृदय में स्थापन कर रहेहो。 ऐसेजीवजोतड़फरहेहै、बेचैनीमें。 जैसे एक नदी में मेंढक और मछलियां तड़फ रही हों, फड़-फड़ा रही हों उनको काल भैरव प्रयोग, साधना कैसे करायेंगे आप? इसलिये गुरू को नहीं देना चाहिये और मैं कह रहा हूँ देना ही चाहिये। मैंयहकररहाहूँनहींक्योंनहींदेना आपमेंकमीहैहीनहींकुछ。 दूंगाऔर100परसैन्टदूंगा、कोईरोकनहींस
हमारा देश भगवान के भरोसे जिन्दा है, भगवान सब ठीक करेंगे और आपका भी सब ठीक करेंगे। कोशिशकरेंयानहींकरें。 भगवानसबठीककरदेंगे。 लड़कीकीशादीहोनीहै、लड़कीकीशादीकर ज्ञानआनाहै、भगवानअपनेआपदेदेंगे। भगवानआयेयानहींआये、मृत्युजरूरआजाय कुछसमयबादतोजरूरआजायेगी。 मगरआवेंनहीं、उसकेलियेहमकाशीमेंइ
कई वर्षो बाद, काफी समय बाद और जबरदस्ती आपने यह साधना शिविर लगवाया है। यहाँलगवानेकीजरूरतनहींथी。 ऊँकारेश्वरमेंजगहथी。 वहाँलगवानाथा。 वहांतैयारीहोचुकीथी。 यहां पर तो टेलीफोन करके मैंने जबरदस्ती कहा कि काशी में ही शिविर करना है। फोर्स के साथ मैंने इन आयोजकों को कहा इसके पीछे कोई तर्क था, कोई कारण था कि इस बार उनको मुझे कुछ देना ही है और वह काशी नगरी में ही दी जा सकती है। कालभैरवप्रयोगयहींसम्पन्नकरायाजास यहीं पर भगवान शिव को पूरे शरीर में अन्दर स्थापित किया जा सकता है। बताऊंगा कि यह शरीर अपने आप में आकाश को छू सके और जमीन में गड़ सके। उस जगह जा सके जहाँ काशी नगरी के नीचे भी एक दूसरी काशी नगरी है। वहां जाकर उन योगियों, यतियों, संन्यासियों को देख सकें, एहसास कर सकें, वह प्रयोग भी कराऊंगा यदि आपके अन्दर क्षमता होगी और क्षमता का मतलब कि आपके और मेरे सम्बन्ध इतने प्रगाढ़ हो सकें कि जो मैंने कहा और आप करेंगे। आपकापरिवारसमाजतोआपकोरोकेंगे। आपकोमेरेपासआनेकेलिये、कईथोकेंगे、 इससे हजार गुनी बाधाये आये, बाधाये इसलिये हैं कि आयें और आप भी इसलिये हैं कि आप जो कार्य करें जो चाहते हैं। इनबाधाओंसेघबरानेसेकैसेकामचलेगा? इसलिये मैं आपको पहले प्रयोग सम्पन्न करा देता हूँ महामृत्युंजय प्रयोग। फिरमैंदीक्षादूंगाशांभवीदीक्षा। आपने अर्थ नहीं समझा शांभवी दीक्षा का कि यह कितनी उच्चकोटि की दीक्षा है। इसकी मुझे कोई चिंता नहीं है कि आप नहीं समझे, इसका तो मुझे विश्वास था ही कि आप नहीं समझेंगे। यहकोईअनहोनीघटनानहींहै。 जिस दिन आप समझ लेंगे उस दिन आश्चर्यचकित हो जाऊँगा कि यह क्या हो गया! यहअन्दरसेलावाकैसेफूटगया? यहसमझकैसेगयेइतनीजल्दी、उसदिनआश。 अचंभाउसदिनहोगाआजनहींहोगा。 आजकुछहोगाभीनहीं。 इसलियेमैंइसप्रयोगकोसम्पन्नकरार
मुझेएकघटनायादआरहीहैउनकानामभीअमर शायदआपलोगजानतेहोंगे。 ये आज से चालीस-पैतालीस साल पहले की बात है और यहाँ उन्होंने एक विद्वत परिशद् यह विद्वानों की एक सभा हुई थी। उसमेंभागलियासंस्कृतकेउच्चकोटिके उन में से अधिकतर लोगों को तो चारों वेद कंठस्थ थे और संगीत शास्त्र का मिलाजुला स्वरूप था। उसमें उच्च कोटि के योगी भी थे, विद्वान भी थे और संगीतकार भी थे। विश्व विद्यालय के संगीत के हैड ऑफ डिपार्टमेन्ट रहे और आगे जाकर संन्यासी बन गये। उनका नाम अमरनाथ मिश्रा था और आगे जाकर संगीत बाबा के नाम से बहुत प्रसिद्ध हुये यहां के लोग उनको जानते हैं और यह मेरी आंखों देखी घटना है कि वे जिस समय मंच संभालते थे वे और उसके कुछ क्षणों के बाद, कुछ मिनटों के बाद एक अजीब घटनासम्पन्नहोजातीथी。 उन्होंने गन्धर्व साधना कर रखी थी और उनका मेरा परिचय पांच-छः साल रहा। गन्धर्व साधना कब सीखी, किससे सीखी में इसके विस्तार में तो नहीं जाना चाहता। मगर उन्होंने गन्धर्व साधना इस प्रकार कर रखी थी कि वे कुछ देर के बाद हारमोनियम, तबला छोड़ देते थे और वह एक घंटे तक खुद बजते रहते थे। सितारबजतेरहतेथेऔरनृत्यहोतारहताथा ऐसी स्थिति थी इस बनारस घराने की जैसा कि बताया कि काशी नगरी विद्वानों की नगरी है, संगीतकारों की नगरी है और साधनाओं की नगरी है। ऐसा ही उनमें एक गन्धर्व स्थापन हो जो देवताओं के संगीत के अधिष्ठाता है। वापिस वह साधना, वापिस वह विद्या इन लोगों के माध्यम से जीवंत हो सकें। कि उन साजों पर चाहे वह हारमोनियम हो, चाहे ढोलक हो, चाहे सितार हो, चाहे और कुछ हो, उन पर अंगुलियां लगाने की जरूरत ही नहीं पड़े और अपने आप में संगीत ध्वनि हो और आदमी बेसुध और पागल सा हो जाये। देखते हुए ऐसी विद्या पुनः जीवित हो आपके माध्यम से, ऐसा ही मैं आपको आशीर्वाद देता हूँ आपके कल्याण की कामना करता हूँ।
आपजहांबैठेहुयेहैवहांएकशहरबसाहुत इस काशी के नीचे एक और काशी है और उस काशी में योगी-यति, संन्यासी उच्चकोटि के तपस्वी और साधक विचरण करते रहते है। क्योंकि काशी के सात तल हैं, एक तल पर हम बैठे हैं जो पृथ्वी तल है, उसके नीचे एक दूसरा तल है, उसके नीचे एक तीसरा तल है और सात तलों तक तो कोई नहीं पहुँच पाया। तीन तलों- चार तलों तक तो लोग पहुँच पाये है और दूसरे तल पर ही जहां हम बैठे हैं उससे नीचे ठीक वैसी ही गंगा नदी और उच्चकोटि के योगी संन्यासी निरन्तर साधना करते हुये स्थित है। आपको सौभाग्य मिले और इन तीन दिनों में ही कोई प्रयोग हो जाये कि आप इस काशी के नीचे जो दूसरी देवत्व नगरी है काशी है वहां के योगियों यतियों के दर्शन कर सकें और जीवन को पवित्र-दिव्य बना सके। ऐसाहीइनतीनदिनोंमेंऐसाकुछहोजाये。 जोजीवनकीयादगारबनजायें。 ऐसाहीकुछकरनाचाहतेहै。 कलकादिनभीअपनेआपमेंमहत्वपूर्णदत भगवतीपार्वतीकादिवसहैऔरपरसोंभगवा
आजआपकाऔरमेरादिवसहै。 हमदोनोंआमनेसामनेबैठेहुयेहैं। आप महान् विद्वान तो है इसमें कोई दो राय नहीं है और उच्चकोटि के योगी यति और संन्यासी भी है पर जयकारा बोलने में कंजूस हैं और आप सभी पूर्ण समर्पित शिष्य है। आपअपनेकोपहचानतेनहींहै。 मैं कई बार अपने प्रवचनों में कह चुका हूँ कि जिस दिन आप अपने को पहचान लेंगे उस दिन इस देश में एक नई सृष्टि का निर्माण हो सकेगा, एक नई चेतना पैदा हो सकेगी, एक नवीन प्रफुल्लता प्राप्त हो सकेगी और यह भारत वर्ष एहसास कर सकेगा कि साधना के क्षेत्र में, संगीत के क्षेत्र में, कला के क्षेत्र में, श्रेष्ठता के क्षेत्र में आज भी संसार में अद्वितीय है। केवल उछल-कूद करने से और नृत्य करने से जो कि बाहर से आकर के डिस्को-डांस और कमर मटकाना और कूल्हे मटकाना ये तो कोई भी हममें से खड़े होकर के थोड़ी सी भांग पी ले तो करने लग जायेंगे। इसमेंतोकोईलम्बी-चौड़ीबातनहींहै। येतोछोटीसीबातहै。 एक-एक गिलास भांग पिला दी तो उससे अच्छा डिस्को आप करने लग जायेंगे। पताहीनहींचलेगा、नधोतीकापताचलेगा、नक
ऐसा डिस्को संसार में देखा ही नहीं होगा और आपको पिलानी है एक दिन शिवरात्रि के दिन। शिवरात्रि के दिन पिलायेंगे कि भगवान शिवमय बन सकें और जैसा भगवान ने पैदा किया वैसे के वैसे ही खड़े हो जायें। उससे पहले यह जरूरी है कि हम अपने स्वरूप को विराट आकार दे सकें। विराटतादेसकें。 यदि आपने यह एहसास कर लिया है, यह दृढ़ निश्चय कर लिया, यह विचार कर लिया, यह चिन्तन कर लिया जैसा कि मैंने अभी बताया कि मैंने उस क्षण को भी देखा है जहां नृत्य हो रहा है और सारे वाद्य यंत्र अपने आप में ही बज रहेहै。 उनको हाथ लगाने की आवश्यकता नहीं है और ऐसी देव-ध्वनि, ऐसी संगीत-ध्वनि मनुष्य नहीं बजा सकता। वहवहीबजासकताहैजिसकेदेवत्वस्थापिि क्योंकिनृत्यकाप्रारम्भभगवानशिवस। आदि जनक भगवान शिव हैं जिन्होंने तांडव नृत्य किया और उससे चौदह वर्ण निकले और उसमें से ही सात स्वर निकले, सा रे गा मा—।
उस भगवान शंकर को ही हम आदि देव मानकर जो भी साधना करें यह जरूरी है कि उनके बीच में एक गुरू होना चाहिये। एकमाध्यमहोनाचाहिये。 मगरयहक्षणतोबीतताजारहाहै。 ऐसे क्षण कब आ पायेंगे जब आप अपने क्षेत्र में अद्वितीय बनें और इतने अद्वितीय बनें कि पूरा भारत वर्ष आपके नाम पर झूम उठे। एहसास कर सके, महसूस कर सके कि आपकी पर्सनेलटी है, आपका ज्ञान है, आपकी चेतना जिस क्षेत्र में भी है उसमें फिर आपके समान दूसरा है ही नहीं। ऐसाआपबनसकें。 उसदिनशायदमुझेसबसेज्यादासंतोषमिल उसदिनआनन्दहीमिलेगा。 उसदिनमुझेपूर्णतृप्तिमिलपायेगी। मगरयहहमारादुर्भाग्यहैकिहमसमझतेन ज्ञानऔरचेतनाहोतेहुयेभीएहसासनहीं न भगवान शिव को हम शिव समझ पाते है, न देवताओं को देवता समझ पाते हैं, न गुरू को गुरू समझ पाते हैं, न अपने आपको समझ पाते हैं। हमएकअजीबसीलयमेंबढ़तेजारहेहैं。 जब तक आपमें यह पकड़ नहीं होगी तब तक मेरी चेतना आप में नहीं हो पायेगी।
आपने संगीत में एक बात गइराई से सूक्ष्मता से नोट की होगी उन्हें भी पता हो या नहीं हो। उन्होंनेनृत्यसेपहलेवाद्ययंत्रक。 उस हारमोनियम को भी, उस संगीत के दूसरे यंत्रें को भी जो बेजान है इसलिये कि उनके आधार पर नृत्य प्रारम्भ हो सके। उन्होंने पहचाना कि यह चीज हैं जिसके आधार पर हमारे पैर उठ सकते हैं और जो पैर एक इंच उठ सकते हैं वो एक फुट भी उठ सकते हैं, दस फुट भी उठ सकते हैं, एक हजार फुट भी उठ सकते हैं और इस आकाश में एक स्थान सेदूसरेस्थानपरजाभीसकतेहै। यहएकयहसीचीजहैहैहैहैबड़ीचीजहैहैहैपपप現計जबआपगुरूकोसमझपायेंगेतोगुरूज्ञा जब आपमें एक तृष्णा, एक प्यास, एक ललक, एक तड़फ पैदा होगी, तब आप प्राप्त कर पायेंगे, सीख पायेंगे। जब तक वह तड़फ पैदा नहीं हो सकती, जब तक आपमें कोई ज्ञान, कोई चेतना पूर्णता के साथ नहीं आ सकती।
गानाऔरसाधनामेंबैठजानायहएकप्रवृत्त यहअपनेआपमेंपूर्णतानहींहै、दिव्यत ऐसाहोनाचाहियेकिआपहैंतोआपहैं। सूर्यहैतोसूर्यहीहै、आकाशथेंदोसू आपजैसेकेवलआपहीहैंऔなりहैंऐसするするげचचसするसपहले यदि उस साधना को वापिस रिपीट किया जाये तो ऐसा करके संगीत मंच पर दिखाया जा सकता है और मैं दिखाऊँगा अवश्य कि आप देखें देव ध्वनि क्या होती है, वाद्य ध्वनि क्या होती है। वहआपकोसमझाऊंगा、वहचेतनाआपकोदूंगा। यहमैंयहबतबतबतबतबतजबजबसमझनेकककक現पप वह साधना आप तब समझ पायेंगे, साधना को पकड़ने की, अपने अन्दर उतारने की क्षमता आप में प्राप्त हो पायेगी।
मैंने सुबह भी आपको अपने प्रवचन में कहा था कि गुरू मिल जाये और आप रूक जाये, गुरू को आप देख लें और आपका हृदय गद्गद् नहीं हो जाये, कंठ अवरूद्ध नहीं हो जाये, आँखों के आंसुओं की धार बहने नहीं लग जाये, आप लिपट नहीं जाये, आप पागल नहीं हो जाये, बेसुध नहीं हो जाये, आप लपक कर एक-दूसरे से मिल नहीं जाये जब तक गुरू और शिष्य कुछ होता ही नहीं। आपकेऔरगुरूकेबीचमेंतोहवाभीनहीं आपकेऔरमेरेबीचतोकईफुटोंकीदूरीह गुरूदेनाभीचाहेतोशिष्यकहांसेप्रा जहांबीचमेंसैकड़ोंप्रकारकेअवरोध。 जहां बारह फीट की, पचास फीट की, सौ फीट की दूरी है यह दूरी आपकी नासमझी की है, इसमें गुरू की कमी नहीं है इसलिये कि मुझे अपने आपके बारे में ज्ञान है। मैंअपनेआपकोसमझसकताहूँ。 मैं क्या हूँ, मैं अपने आप को समझ सकता हूँ, मैंने सुबह भी कहा मैं कोई महापुरूष नहीं हूँ, योगी नहीं हूँ संन्यासी नहीं हूं या कुछ भी नहीं हूं। मगरकुछहूंइसबातकातोमुझेएहसासहै। इसबातकागर्वहैऔरइसगर्वकोआपमिटान संसारकाकोईव्यक्तिमिटानहींसकता। कभीऐसाक्षणआये、जबआपकेपासरूकेनहीं फिरआपकीआँखेभीगनेसेबचेनहीं、कंठ。 फिरआपपागलहोसकें。 गुरू को देखते ही जब आपके अन्दर इतनी तड़प, इतनी प्यास, इतनी बेचैनी पैदा हो जाये कि एक क्षण भी उसके बिना रह नहीं सके। जिस दिन ऐसा हो जायेगा, उस दिन आप सही अर्थो में साधक बन सकेंगे, उस दिन आप सही अर्थों में शिष्य बन सकेंगे। उससेपहलेआपशिष्यनहींबनसकते、केवल
क्योंकि यह साधना एक कला है, साधना अपने अन्दर उतारने की एक विद्या है। इसलियेमंचपपमंचमंच現वबब現बबबबबप業者मैं तो पूरी तरह से देता हूँ, आप एक सामान्य व्यक्ति जो सामने धोती कुर्ता पहने बैठा है और सामान्य रूप से समझते हुये चले जाते हैं। जैसेकथासुनरहेहैं。 आपके अन्दर के तार झंकृत होने चाहिये, आपके अन्दर के प्राणों के स्पन्दन होने चाहिये। आपके अन्दर एक ललक हानी चाहिये, बैचेनी होनी चाहिये, तड़फ होनी चाहिये और तड़फ के बिना बेचैनी के बिना यह जीवन भी अपने आप में बेकार है। फिरइसजीवनकाअर्थभीक्याहै? फिरजिन्दासौसाल-पचाससालजिसेंफिरइस धूं-धूं करते हुये लकड़ी जले पच्चीस साल, उसका कोई फायदा नहीं है। एकबारभभककरजलजायेंतोरोशनीपैदाहोत चचचकककएकषणलिये、मगमगमगवहोशनीअपनेमें
ऐसा तभी हो सकता है जब आप का सारा शरीर अपने आप में गुरूमय बन सके। एक-एक छिद्र, एक-एक प्राणस चेतना, एक-एक भावना एहसास कर सके कि अगर गुरू हमें एक सिस्टेमेटिक तरीके से कुछ दे रहे हैं तो उसका एक लय है, ताल है, एकदम से सब कुछ प्राप्त नहीं हो सकता। उसके एक तरीके से कुछ दे रहे हैं तो उसका एक लय है, ताल है, एकदम से सब कुछ प्राप्त नहीं हो सकता। उसकेएकतरीकेसेहीसबकुछप्राप्तहो。 इन तीन दिनों में, इन दो दिनों में मैं अपनी तरफ से वही उपाय करता जा रहा हूँ और आप प्रयोग करते जा रहे हैं। कई वर्षो से करते जा रहे हैं और शायद अगले जीवन में भी आप प्रयोग करते रहेंगे और उससे अगले जीवन में भी प्राप्त करते रहेंगे। मुझेयहमुझेमेंनहींनहींआआआなりहसिलसिलसिलसिलसिलसिलसिलसिलसिलसिलपपपपपमिटपपपするयेग城? यहतड़फ、बेचैनीकबपैदाहोगी? कबगुरूकोदेखतेहुएआपरहनहींपायें。 कबआपकीआँखोंसेआँसूओंकीधाराबहनेलत कबआपकामस्तिष्कउनकेचरणोंसेलिपटज कबआपतड़फबैचेनसेयुक्तहोजायेंगे? ऐसा क्षण कब आयेगा और यदि ऐसा क्षण नहीं आया तो आपके और मेरे बीच में हजारों-हजारों मील की दूरी है। आपके ज्ञान में और मेरे ज्ञान में वह भावना, वह चिन्तन, वह क्षण आ सके क्योंकि जीवन का सबसे मधुर संगीत तड़प है, बेचैनी इससे ऊँचा कोई संगीत नहीं है, इससे ऊँची कोई साधना नहीं है, इससे ऊँचा कोई मंत्र नहीं है।
राधा ने कोई मंत्र नहीं सीखा था पर एक-एक क्षण वह बैचेन थी, तड़प में थी। मीरा ने कोई मंत्र जप नहीं किया था, पर महल से उतरते समय उसने एक क्षण भी सोचा नहीं, हम घर से बाहर निकलते समय दस हजार बार सोचते है। वहमहलोंसेनिकलगईअपनेआपमेंएकराजत उसनेइसबब現家तनहींなりसोचसोचなりするまでक्योंकि उसके हृदय में एक प्यास थी, एक प्रेम था और लोगों ने कहा, राणा ने कहा कि तुम क्या कर रही हो? उसनेकहाकि'सूलीऊपरसेजपियाकी'。 अबजैसेहीमिलनाहोगावैसेमिलजायेंगे? ठेठसूलीकेऊपरहै。 अब सूली के ऊपर चढ़ना पड़ेगा मुझे और तुम्हारे गुरू भी उतनी ऊँचाई पर हैं। जहां पांव छिल सकते हैं, पांव में से खून निकल सकता है, रूधिर बह सकता है, लहूलुहान हो सकते हैं मगर उससे जो प्राप्त हो सकेगा, तड़फ पैदा हो सकेगी वह बहुत कम लोगों में हो सकेगी। तब आपके अन्दर एक एहसास हो सकेगा, तब आप सही अर्थों में कबीर, सूर, तुलसी, मीरा, शंकराचार्य, वशिष्ठ, विवेकानन्द, अत्रि, कणाद, विश्वामित्र बन सकेंगे।
एक सामान्य मनुष्य बन करके जिन्दा रहना तथा मर जाना कोई बहुत बड़ी अहमियत नहीं है, कोई राष्ट्र घटना नहीं है कि आप पैदा हुये और मर गये, यह कोई राष्ट्रीय घटना नहीं है। पांवपसारेऔरसमाप्तहोजायेंगे。 कभीएहस#€किय・孔किकिなりूदेवですककसभसभसभसभसभओंमेंआआहे、कक現家役? औरजीतेजीजीवनसेप्राप्तनहींकरपाय फिर माइकल जैक्सन देगा, फिर भोंडा भडकीला संगीत देंगे आपको, फिर इस प्रकार के लोग आयेंगे जो डिस्को देंगे। वहदेंगेआपको、फिरयहदेशवापसअंधकारम फिर एक बार शराब के नशे में चूर हो जायेगा और हाथ मलने के अलावा आपके पास कुछ रहेगा नहीं।
इसलियेइसलियेइसलिये業者जोकुछमिलनमिलनなりするが、 मिला नहीं तो अधूरी तड़प, अधूरी प्यास, अधूरी बैचेनी जीवन को उत्सर्गता और आनन्द नहीं दे सकती और यह सम्बन्ध केवल गुरू और शिष्य के बीच में हो सकते हैं और शिष्य शब्द का मतलब है शिष्य हो उसकी उम्र का कोई सम्बन्ध नहीं होता। उसमें न कोई लोक होता है, न कोई लाज होती है, न शर्म होता है, न हया होती है। एक प्रेम है, एक दीवानगी है, अपने आप में एक जुनून है, एक ऐसा जुनून है जिसमें अपने आप में क्या है? कौनहै? क्यादेखरहाहै? क्याहोरहाहै? यहअपनेआपमेंकोईअर्थनहींरखता। यदि इतना ही पैदा हो जाये तो भी जीवन में बहुत कुछ प्राप्त हो सकेगा। आपमें ऐसी तड़प पैदा हो, आपमें ऐसा दर्द पैदा हो, बैचेनी पैदा हो, हर क्षण आपके हृदय में एक ऐसी चिन्गारी पैदा हो कि मैं गुरू के बिना नहीं रह सकता, संभव नहीं है, मेरे पांव रूक नहीं सकते, मेरी आँखे उनको स्मरण करते ही, आंसुओं से भीग जाती है, मरे पांव थिरकने लग जाते है, मेरा शरीर बैचेन हो जाता है। यह एहसास एक शिष्य और गुरू के बीच में आवश्यक है जरूरी है और जब यही एहसास हुआ तो भगवान शिव भी अपने आप में पूर्ण रूप से नृत्यमय बन गये। यहएहसासनहींकियाकिलोगक्याकहेंगे、 सांपहै、खप्परहैहाथमें、भस्मीहैइसबा उन्होंने यह नहीं सोचा कि मैं कमाऊं और कुछ पैसे जोड़ करके मर जाऊँ। ऐसा नहीं सोचा उन्होंने और आज हजारों-हजारों लोगों की एक आत्मा है, एक दिव्यता है, एक चेतना है, एक विश्वनाथ है, हम इन्द्र को तो याद करें नहीं करें शायद ही करते होंगे। उनके मन्दिर है या नहीं है, हमें मालूम नहीं पर भगवान शिव के मन्दिर तो जगह-जगह है। क्योंहै?
इसलिये कि उनके हृदय में एक ऐसी तडफ, एक ऐसी बैचेनी थी कि सती को अपने कंधो पर लेकर पूरे संसार में घूमते रहे, पूरे आर्यवर्त में घूमते रहे, एक जुड़ाव था। वहजीवनकाआनन्दहै。 उसआनन्दकोआपकभीअनुभवकरें。 जिसने दर्द, एहसास ही नहीं किया, वह जीवन जिया ही नहीं, जिसने हृदय में बैचेनी पाली नहीं, जिसके पांव थिरके नहीं, जिसके गले में गुरू शब्द अटक के रहा नहीं, जिसकी आँखे नम हुई नहीं वह जीवन अपने आप में कुछ नहीं है। वहतोढोनेकेसमानहैजोढोयेज़े जोदेशकेचारोंतरफकावातावरणहै、वहआपप उनसेहमेंकोईलेन-देननहींवहएकअलग。 परइसकामतलबयहनहींकिहमसाधकहैहीन。 वहएकअलगक्षेत्रहै。 यहयहयहससなりसहैなりऔऔ現計
इसलिये मैं दीक्षाओं के माध्यम से, प्रयोगों के माध्यम से, विशेष दीक्षाओं के माध्यम में वही कार्य करता आ रहा हूँ कभी न कभी तो चिन्गारी पैदा हो। यदि एक बार चिन्गारी पैदा हो जायगी तो आग की लपट अपने आप उठ जायेगी। एकबारबैचेनीकादर्दपैदाहोजायेबसखत होजायेतोअपनेआपखुमारीमेंडूबजायेग एहसासहोनेलगजायेगाकिकुछहै。 मेरे और गुरू के बीच में कुछ सम्बन्ध है जहां मैं रह नहीं पा रहा हूं। क्योंनहींरहपारहाहूँइसकाकुछपतानह क्योंउनकोयादकरतेहीगलारूकजाताहैपप यह पता है कि उनको याद करने के बाद में यह संसार बेकार सा लगता है। जीवनतोचलतारहताहैऔरचलेगाभी。 पत्नी भी होगी, बन्धु-बांधव भी होंगे, धन भी होगा और फूलों की मालाये भी होगी। मगरअन्दररसनहींहै。 प्राणश्चेतना नहीं है, लिपटने की क्रिया नहीं है, झूमने की क्रिया नहीं है और यह नहीं है तो जीवन में कुछ नहीं है। क्योंकिआपतोभोजनकरनेकेबादमेंमल चाहेहलवाखालें、चाहेरोटीखालें。 वहमलहीबनताहै。 उसशरीरमेंअपनेआपमेंक्याविशेषताह जिससे हलवा खाने के बाद भी मल बनता है, रोटी खाने के बाद भी मल बनता है। उस शरीर की क्या विशेषता है जहां डॉक्टर लोग खोदते जा रहे और उसमें से एक हजार बीमारियां निकलती जा रही है। उसशरीरकीक्याविशेषता。 कभी यहां से खोदेंगे, कभी यहां से इंजेक्शन लगायेंगे, कभी यहां चीरा लगायेंगे, कभी पेट चीरेंगे, कभी हाथ चीरेंगे और उसके बाद भी कहेंगे कि कुछ समझ में नहीं आ रहा है कि तकलीफ कहां है। उनकोकुछएहसासनहींहोता、विज्ञानकुछन मनुष्यमेंआनन्ददेहीनहींसकता、पूर॰ इनकेबसकीबातहैहीनहीं。 सिरकोहजारजगहसेखोदनेकेबादभीउनको हजारों आपरेशन किये गये, सैकड़ों लोगों का आपरेशन किया, हार्ट का ऑपरेशन अलग किया गया, पेट का अलग किया गया और शरीर को सारा तोड़-फोड़ कर समाप्त कर दिया। उसकेबादभीविज्ञानकोकुछनहींमिलपाय मिलभीनहींसकता。 वह मिल सकता है केवल साधनाओं के माध्यम से क्योंकि मैंने विज्ञान को भी पढ़ा है और ज्ञान को भी पढ़ा है। दोनों को देखा है, मैंने संन्यास को भी देखा है और मैंने गृहस्थ को भी देखा है दोनों को देखा है। मैंने उच्चकोटि के संगीत को भी सुना है और घटिया स्तर के संगीत को भी देखा है दोनों बार तालियां बजाई मगर संगीतकार बनें तो अद्वितीय ही बनें, शिष्य बनें तो अद्वितीय बनें, साधना करे तो अद्वितीय साधना करें। कुछऐसाकरेंजोआपकानामसार्थकबनासके। आपके मरने के बाद इस जीवन का कोई मूल्य, कोई वैल्यू, कोई अर्थ, कोई विशेषता है ही नहीं। मगर हम इस मृत्यु के भय को कब समाप्त कर पायेंगे और मृत्यु के भय को समाप्त करने के लिये आपके पास कोई साधना नहीं हैं।
गुगुकなりकध現計वहवह#€するまったकिबहबहなりするまでफूलहैं、इसलियेइसलियेइसलियेकक現कककोचुनतचुनतするचुनत、 दीकदीकाक愛अ、गुगु現実、आतआत現。 जजearजलेंसदसदसद現गुकक現。 उसका उद्देश्य तो मात्र इतना है, कि व्यक्ति को उस परम स्वतंत्रता का बोध करा दे, जिसे पाकर कोई भी सांसारिक समस्या, दुःख, पीड़ा उसके मन पर आघात नहीं कर पाती और पूर्ण निशि्ंचत हो वह सदा बिना भय और संशय के उच्चता एवं सफलता की ओगरसर होता रहता है- सांसारिक जीवन में औीध्यातामम मममममममममममम
तबएकअनूठासन्तुलनस्थापितहोजाताहै। आजहरमनुष्यकेजीवनमेंअसन्तुलनहैै सांसारिक जीवन में वह डूब गया है, कि उसे स्मरण ही नहीं रहा कि आध्यात्मिक तल पर भी उसका अस्तित्व है। उस पक्ष को सर्वथा उसने अनदेखा कर दिया, जिसके कारण संसार के दुःख एवं पीड़ा रूपी आघात उसे यों हिला कर रख देते हैं, जैसे आंधी में एक पत्ता। इसी असन्तुलन के कारण आज संसार में इतना पाप, असंतोष, आतंकवाद व्याप्त है। सांसारिक जीवन और आध्यात्मिक जीवन में सन्तुलन द्वारा ही इन सबका अंत संभव है और इस प्रक्रिया में सहायक हो सकते हैं केवल और केवल एक सद्गुरू।
दीक्षा कोई सामान्य क्रिया नहीं है कि मंत्र दे दिया और तुमने अपने घर में मंत्र जप कर लिया। गुरूतोजिम्मेवारीलेताहै、पूरीजिम्त प्रत्येक व्यक्ति, प्रत्येक शिष्य की समस्याओं के समाधान हेतु वह सदा सचेत रहता है और उसके जीवन को पूर्णता प्रदान करने के लिये तत्पर रहता है। दीक्षा वह अनेंकों प्रकार से दे सकता है- मंत्र के द्वारा, स्पर्श द्वारा या मात्र दृष्टिपात द्वारा। अनेकों लोग विशेषतः तथाकथित वैज्ञानिक संदेह प्रकट कर सकते हैं मंत्रों के संदर्भ में, परन्तु अगर वह पूर्ण गुरू है, तो सिद्ध कर देता है, कि वैदिक मंत्र प्रमाणिक ही नहीं, अपितु इतने शक्तिशाली हैं, कि क्षण में व्यक्ति का रूपान्तरण कर दें।
व्यक्ति तैयार हो और तैयार का मतलब तन, मन, धन से एवं बिना हिचक के, बिना भय और संदेह के, तो गुरू को एक क्षण नहीं लगता और यह उपलब्धि जो गुरू प्रदान करता है, कोई सामान्य नहीं है। व्यक्ति के जन्मों की न्यूनताओं को नष्ट करना पड़ता है अपने तप द्वारा और न केवल उसकी न्यूनताओं अपितु उसके माता-पिता, उसके पूर्वजों की समस्त न्यूनताओं को समाप्त करना होता है, क्योंकि वे सब संस्कारों द्वारा आनुवांशिक प्रक्रिया द्वारा उसमें विद्यमान होती हैं। उसके तन की, उसके मन की, उसके रक्त की शुद्धि करनी होती है गुरू को। एक सामान्य व्यक्ति को यह सब कठिन प्रतीत हो सकता है, परन्तु गुरू के लिये नहीं। वह तो बस अपनी तप ऊर्जा को हर क्षण प्रवाहित करता रहता है और जो भी बुद्धि से मुक्त हो सके, इस चेतना को ग्रहण कर रूपान्तरित हो सकता है। तबविशेषदीक्षाकीआवश्यकतानहीं। सद्गुरू के शरीर से हर दम तप शक्ति संप्रेशित होती रहती है। यदि आप उसे ग्रहण कर लें, और ग्रहण आपको करना है, गुरू कोई मतभेद नहीं करता। उसकेलियेसभीबराबरहै。
आप तैयार है तो उस चेतना को अंगीकृत कर लेंगे और चैतन्यता प्राप्त कर लेंगे। यह भी दीक्षा ही है एक प्रकार से, क्योंकि गुरू की ही शक्ति द्वारा आपके भीतर एक प्रस्फुटन होता जब शिष्य गुरू में मिल जाता है, प्रसन्नता के साथ में तो यह मिलना एक निष्ठता की वजह से होता है। एक निष्ठता का अर्थ है निरन्तर गुरू कार्य में संलग्न और सचेष्ट रहना। मेरामतलबयहनहींकिआपमेराकामकरें। मैंतोकेवलश्लोककाअर्थस्पष्टकररर आप गुरू को देखे या नहीं देखे परन्तु प्रतिक्षण उनके कार्य में संलग्न रहते हैं, सचेष्ट रहते हैं, निरन्तर आगे बढ़ कर उनके कार्य को करते हैं तो मन में एक संतोष होता है कि मैंने वास्तव में एक क्षण को जीया है,फेका नहीं है इस क्षण का, इस क्षण में मैंने कुछ सृजन किया है, व्यर्थ नहीं किया है इस क्षण को। इसक्षणमेंकुछरचनाकीहै、गालियांनहीत इस क्षण में किसी का स्मरण किया है, किसी के हृदय में उतरने की क्रिया की है। क्षण आपका है, आप चाहें दो घंटे ताश में बिता दें, वह चाहे आप चिंतन करके या कोई कार्य करके बिता दें। भाग्ययाजीवनतोआपकेहाथमेंहै। सामान्यमनुष्यबसजीवनजीकरबितालेते आपजाकरदेखलेंसड़कपरसबसामान्यमनुष उनमेंकुछविशेषतविशेषत#विशेषतहीही、उनउनउनपतपतपतनहींकि
शिवकह#なりहतेहते इस को प्राप्त करने लिये तिल तिल करके अपने है। जलाया है। जलाया है हो आज पूरा देश पूरा विश्व मानता है कि यह कुछ परस्नैलटटट उस सृजन को करने लिये व्यक्ति को अपने आप को जलाना ही पड़ता है।
खून जल जाता है तो वापस आ जाता है, मांस जल जाता है तो वापस आ जाता है, मगर गया हुआ समय वापस नहीं आता है। अगर मैं कंकाल भी हो जांऊ, मांस भी गल जाये तो मांस वापस चढ़ जाये। मांस चढ़ाने वाले बहुत मिल जायेंगे जो मिठाई खिला देंगे, घी खिला देंगे, मालिश कर देंगे तो मांस चढ़ जायेगा। मगर कोई मुझे ज्ञान नहीं सिखा सकता, धर्म शास्त्र नहीं सिखा सकता, धर्म सार नहीं सिखा सकता। कोईभाग्यकानिर्माणकरकेमुझेनहींदे मुझेमहानताकोईनहींदेसकता。 वहतोसबमुझेखुदकोप्राप्तकरनापड़े इसकेलियेखुदकोजलानापड़ेगा。 उसकेलियेरचनात्मकचिंतनकरनापड़ेगा। उसके लिये प्रेम करना पड़ेगा, किसी के हृदय में उतरना पड़ेगा और एकनिष्ठ होना पड़ेगा। किनारे पर खड़े होकर नदी को या तालाब को भी पार नहीं किया जा सकता। आप सोचेंगे कि गुरू जी को भी देख लेते हैं, घर को भी देख लेते हैं और बाहर का काम भी देख लेते हैं, सब कुछ एक साथ कर लेते हैं- यह एकनिष्ठता नहीं हैं।
एकनिष्ठता का अर्थ है कि एकचित्त होकर के तीर की तरह एक लक्ष्य पर अचूक हो जाना और जो तीर की तरह चलता है वह जीवन में सर्वोच्चता प्राप्त करता है और जो सर्वोच्चता प्राप्त करता है उसे संसार देखता है और जिसको संसार देखता है उसका जीवन धन्य होता है。
आपकी पीढि़या जो स्वर्ग में बैठी होती हैं वे भी धन्य अनुभव करती है कि हमारे कुल में कोई तो पैदा हुआ जो पूरे भारत में विख्यात है पूरा भारतवर्ष इनको स्मरण करता है, इनकी आवाज पर लाखों लोग एकत्रित हो जाते हैं। इनकीआवाजपरलाखोंलोगनाचनेलगजातेहैत उन्हें भी लगता है कि कुछ तो इस बालक में कुछ हैं और उनको प्यारा अनुभव होता है। व्यक्ति पहले दिन से लगाकर अंतिम दिन तक बालक ही रहता है यदि सीखने की क्रिया को, निरन्तर आगे बढ़ाने की क्रिया है, यदि प्यार करने की क्रिया हो और वह क्रिया भी आपके हाथ में हैं। उपनिषद् में कहा गया है कि सब कुछ आपके हाथ में है आप कैसा जीवन जीना चाहते है, घटिया, रोते-झींकते हुये दुःख में अपने जीवन को बर्बाद करते हुये या अपने आप एकनिष्ठता प्राप्त करते हुये जीवन में प्रत्येक क्षण आनन्द प्राप्त करते हुए मुस्कुराहट के साथ में, चिन्तन के साथ में, कार्यों में डूबते हुये ओर अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते हुये।
कैसाजीवनआपव्यतीतकरनाचाहतेहैं। वह आपके हाथ में है और यही आपके भाग्य का निर्माण करने वाला तथ्य होता है। इसलिये मैं हर क्षण रचनात्मक बनाने की ओर अग्रसर रहता हूँ आपका भाग्य दुर्भाग्य, आयु, पूर्णायु, अमरत्व और मृत्यु, पूर्णता और अपूर्णता सब कुछ आपके हाथ में है, मगर उसका आधार एकनिष्ठता है। आप जीवन में एकनिष्ठ बनें ऐसा ही मैं आपको हृदय से आशीर्वाद देता हूँ।
परम्पूज्यसद्गुरूदेव
कैलाशश्रीमालीजी
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