समुद्र मंथन से निकले विष को ग्रहण करने का सार्मथ्य व सहास सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में केवल महादेव में ही था वह ये पूर्ण उत्साह के साथ जिस विष हलाहल से सभी का विनाश होना था, ऐसे विषैले पदार्थ को सर्व कल्याण के लिये महादेव ने अपने अन्दर लेकर उस विषकोसमाप्तकिया、उत्साहकेसाथबिनाको उत्साह का यह भाव पूरे माह कोई त्यौहार, उत्सवों में जब हम अपनी सभ्यता, संस्कृति, पर्वो के साथ ही ऋतु में हो रहे परिवर्तन का स्वागत करते हैं वह हर तरह के सदकर्म, पूजा, तीर्थ यात्र, यज्ञ, व्रत का महत्व है। जिससे हमारे जीवन में भी मंथन हो व सभी प्रकार के मानसिक, शारीरिक पीड़ाओं का अन्त साथ शमन हो, जीवन की कठिनाईयों का, मृत्यू युक्त स्थितियों का अन्त हो।
यहमंथनसमसमतभीतभीहैहैधधधधなりयस現面下、प#、पप、कीकी愛、सनसनककなりशなりवणなりअनअनअन現家कीबुबुबुबुबु現。 उत्साह तभी सम्भव है जब जीवन में विष पूर्ण स्थितियों का अन्त होगा और यह केवल एक दिन मंत्र जप या साधना करने से नहीं अपितु नित्य सबसे प्रथम में किया जाने वाले कर्म हैं, जिसका प्रारम्भ गुरू पूर्णिमा से शुरू होकर दिवाली की अमावस्या तक नियम बध रूप मेंकियमेंなりでなげ、तभीतभीतभीमेंमेंहह現。 जीवनजीवनजीवनजीवनजीवनजीवन現。
आपकेजीवनआपकेउतउतउतなりबनबनなりでなが. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . गुगु業者केूदेव現。です。
आपकाअपना
विनीतश्रीमाली
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