अर्थात्गृहस्थकेबादवानप्रस्थग्रहण इससे समस्त मनोविकार दूर होते है और वह निर्मलता आती है जो सन्यास के लिये आवश्यक है। योतोशास्त्रेंनेइससंस्कार。 किन्तुमनुस्मृतिनेइससंबंधमेंबह
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प्राचीन ऋषियों ने इस संस्कार का विधान बहुत सोच विचार कर किया था। पचासपचपनवर्षकीआयुमेंइन्द्रियाँ。 परिवार के प्रति अपने कर्तव्यों को व्यक्ति अधिकांशतः पूर्ण कर लेता है। अतःतबउसेलोभ、मोहआदिकोत्यागनेकाउउ वानप्रस्थसंस्कारसमाजकेविकासकेलिय
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अन्य संस्कारों की भांति इस संस्कार को भी पूजा पाठ के साथ सम्पन्न किया जाता है। इसके लिये वानप्रस्थ ग्रहण करने वाले व्यक्ति को पीले रंग के वस्त्र पहनाये जाते है। आवश्यकहोतोपीलेरंगकायज्ञोपवीतभी पीला वस्त्र लिया जाता है जिसमें पवित्र पुस्तक, वेद आदि होते है, उनकी पूजा की जाती है। वानप्रस्थी को सर्वप्रथम स्नानादि के पश्चात् पीले वस्त्र धारण करने चाहिये इसके बाद संस्कार के स्थल पर आसन ग्रहण के समय पुष्प अक्षत से मंगलाचरण बोला जाता है। वानप्रस्थी को संस्कार के महत्त्व व उसके दायित्वों के बारे में उपदेश दिया जाता है। इस प्रक्रिया के पश्चात् संकल्प करवाया जाता है और तिलक व रक्षासूत्र बंधन कर उपचार किये जाते है। वानप्रस्थी हाथ में पुष्प अक्षत एवं जल लेकर वानप्रस्थ व्रत ग्रहण करने की सार्वजनिक घोषणा करते हुये संकल्प लेता है कि उसका जीवन अब उसका अपना या परिवार का न होकर समस्त समाज का है, अब वह स्वयं या पारिवारिक लाभ के लिये नहीं बल्कि विश्वकल्याण के लिये अपने दायित्वोंकानिर्वाहकरेगा。
इससमयनिम्नसंकल्पलियाजाताहै।
इसके पश्चात् वानप्रस्थी अपना ज्ञान व समय उच्च आदर्शो के अनुरूप जीवन ढ़ालने, समाज में निरंतर सद्ज्ञान, सद्भाव एवं लोकोपकारी रचनात्मक सत्प्रवृत्तियां बढ़ाने तथा कुप्रचलनों, मूढ़ मान्यताओं आदि के निवारण हेतु कार्यो में व्यतीत करते है। जोसमसमなりするまでमम愛केलियेलियेवव対स現。
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