जो के शिष्य गुरू तत्व रहस्य को ो हीं जान पाता、वह पूर्णता प्राप्ता कनीं अतः शिष्य को चाहिये कि वह गुरू तत्व को समझे। . で . . .
शिषशिषशिषकोसदैवなりूですककなりするげयपपप現家なりक現。
शिषशिषशिषकोचなりचकिपですपपप現計इसी माध्यम से वह सौभाग्यशाली बनसकता है।
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शिष्य के समस्त पाप जनित विघ्नों को समाप्त करने के कारण गुरू शिव स्वरूप हैं। शिष्यकोहरदमऐसाहीचिन्तनकरनाचाहिय
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गुरूशब्दकाउच्चारणकरनाहीजीवनकीपू
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शिषशिषशिषकेलियेगुगु現家ूなりूपするसमससमस現家देवतदेवतदेवतदेवतमें
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गुरूतत्वविशुद्धरहस्यमयज्ञानहै। इसे प्राप्त करने के लिये शिष्य का मन पावन और निर्मल होना चाहिये।
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