आप अपने को धन या वैभव पाकर सुखी मानने लगते हैं क्योंकि आपने अभी वास्तविक सुख को देखा ही नहीं। इनसुखोंकेपीछेभागकरआपअंततःदुःख。 भोग से दुःख ही पैदा हो सकता है जबकि गुरू तुम्हें उस सुख से परिचित करना चाहता है जो आंतरिक है, जो स्थायी है।
तुम सोचते हो कि शादी करके सुखी होंगे या धन प्राप्त करके सुखी होंगे। सुखतोउसीक्षणसंभवहै、वहधनपरनिर्र वह वास्तविक आनंद तुमने नहीं देखा, नहीं देखा इसीलिये तुम धन को ही सुख मान बैठे हो जबकि उससे केवल तुम्हें दुःख की प्राप्ति होती है।
वास्तविक सुख तुम्हें तब ही प्राप्त हो सकता है जब तुम अपने आप को पूर्ण रूप से गुरू में समाहित कर दोगे और वह हो गया तो फिर तुम्हारे जीवन में कोई अभाव रह ही नहीं सकता, धन तो एक छोटी सी चीज है। 南
गुगुकेसस現実सभीदेवीदेवीदेवी-देवतदेवत−するまされたबबबなりहतेचですहतेचच現चककक現。 गुगुगुहह現。
तुमने एक शरीर को गुरू मान लिया है, गुरू तो वह तत्व है जिससे जुड़कर तुम उन आयामों को स्पर्श कर सकते हो जिनको शास्त्रें में पूर्णमदः पूर्णमिदं कहा है। उसकेलियेगुरूकेशरीरकोबाहोंमें आवश्यकता है कि तुम अपना मन उनके चरण कमलों में समर्पित करो और वह हो पायेगा केवल और केवल मात्र गुरू सेवा से और गुरू मंत्र जप से।
गुगुमंतगु対頃बです。 पूपूपूब現家ब#なりणतेजस現家तेजसतेजससम愛समसमहुईऔऔऔ対दददद現。
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