शिष夫कोनगुगु業績यदि कोई गुरू की निन्दा करता है, तो शिष्य को चाहिये कि या तो अपने वाग्बल से अथवा सामर्थ्य से उसको परास्त कर दे अथवा यदि वह ऐसा न कर सके तो ऐसे लोगों की संगति छोड़ देनी चाहिये। गुगु-निननिन愛utलेनलेनउतनする現。
गुगुकीकृपなりसेですआतआतआत現家पなりमेंですपपपहैहै、यहीवेदोंनेभीなりकह、 शिष夫वही、जो、जोजोगुजोなりूबतなりयेするमする。
गुरू के पास बैठे रहने मात्र से ही साधक के हृदय में ज्ञान का प्रकाश होने लगता है जिसको ब्रह्म प्रकाश कहा गया है, जिससे मन के समस्त प्रकार के भ्रम व चिन्तायें स्वतः ही भाग जाती है। अतःशिषशिषशिषचचचचकिकिगु業者जिस प्रकार एक दीपक से दूसरा दीपक पास लाने मात्र से ही जल जाता है, उसी प्रकार गुरू के सानिध्य मात्र से ही शिष्य का कल्याण हो जाता है।
शिष्य को नित्य एक नियमित समय पर नियमित संख्या में गुरू मंत्र का साधना रूप में जप अवश्य करना चाहिये, यदि वह ऐसा करता है, तो उसके जन्म-जन्मांतरीय दोषों और पापों का क्षय होता है चित्त निर्मल हो जाता है, जिससे ज्ञान और सिद्धि की भीप्राप्तिहोपातीहै। शिष्य को यथा संभव अधिक से अधिक, जब भी समय मिले गुरू मंत्र का जप करते ही रहना चाहिये।
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शिषशिषशिषकेपपपपपप現家चितなりसीढि़यसीढि़यなりआतआतआतआत現。
स宅की★ビスタン
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