जीवन में भगवती मातंगी की दीक्षा प्राप्त होना ही सौभाग्य का प्रतीक माना गया है। विश्वामित्र ने तो यहां तक कहा है- 'बाकी नौ महाविद्याओं का भी समावेश मातंगी दीक्षा में स्वतः ही हो गया है। केवल मातंगी दीक्षा को ही सम्पन्न कर लें तो, भी अपने आप में पूर्णता प्राप्त हो सकती है। इसीलिए तो शास्त्रें में मातंगी दीक्षा की प्रशंसा में कहा गया है- मातंगी मेवत्वं पूर्ण, मातंगी पूर्णत्व उच्चते अर्थात् मातंगी एकमात्र श्रेष्ठतम दीक्षा है और एक मात्र मातंगी ही पूर्णता दे सकती है।
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भगवती मातंगी की मंत्र मीक्षा से गृहस्थ सुख की प्राप्ति होतै ही होतै हीहीहसतीस हीतीहसीहसीतीと同時に、 यदि-पत-पतपतकेमधमधमध現家समसम現家धोंमें業者、 सससकोकुटुम歳ब、पुतपुत現家、पुतपुतपुत歳、पतपत、ससなめてपपप現家पप現पपप現。
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इस दीक्षा को मातंगी जयंती या किसी भी सोमवार को प्रारम्भ किया जा सकता है। प्रातः काल उठकर स्नान करने के पश्चात् ''दैनिक साधना विधि'' पुस्तक से गुरू पूजन सम्पन्न करें तथा इस दीक्षा में सफलता के लिये प्रार्थना करें। तत्पश्चात्दक्षिणाभिमुखहोकरबैठजाय सर्वप्रथम 'मातंगी यंत्र' को हाथ में लेकर जल से स्नान करायें, तत्पश्चात् उसे पोंछ कर किसी ताम्र पात्र में स्थापित करें। यंत्रकाकुंकुमअक्षतसेपूजनकरेंतथ इसकेपश्चात्दोनोंहाथजोड़करभगवतीम
श्याम रंग से सुशोभित भगवती मातंगी, जिनका मस्तक तेज से युक्त है, तीन नेत्रें वाली, कोमल हृदय वाली देवी जो रत्न के सिंहासन पर विराजमान है। अपने भक्तों को अभीष्ट फल प्रदान करने वाली है, देवगण भी जिनके दोनों चरणों की पूजा करते हैं, नील कमल के समान, कान्ति से पूरित, राक्षसों के लिये राक्षस रूपी, अरण्य के लिये दाणनि के समान है, जिनके चारों हाथों में पाश, खडग , अंशक, कमल है, जिनसे वे शत्रुओं का नाश कर साधक को अभीष्ट फल देती है, ऐसी आनन्ददात्री भगवती मातंगी को मैं नमस्कार करता हूँ। इसके बाद 'मातंगी माला' से निम्न दशाक्षर मंत्र की 11 माला मंत्र जप 16 दिन तक नित्य करें।
दीक्षा के समाप्ति के बाद साधक यंत्र वमाला को दी अथवा मालाब ममाप्ददिदिस्जजस्जस्जस्जस्स्जस्जस्जस्जस्जस्जस्जजस्जस्जस्जस्स्जस्जें इसस##€सेनिशनिशなりसするसするधककोなりमですतंगीकृपですकृपकृप#€兄弟
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