गुरू शिष्य को अपना समकक्ष बनाने का सदैव प्रयास करता है और इसी कारण से उन्हे स्वयं सर्वप्रथम शिष्य के अनुरूप धारण करना पड़ता है, परन्तु यह शिष्य की अज्ञानता होती है, जो वह गुरू को सामान्य मनुष्य के रूप में देखता है। उसके लिये ऐसा चिन्तनदुर्भाग्यपूर्ण होता है।
यदिशिषशिषशिषयदियदियदियदियदियदियदियदिअहंक現अहंकशशजजजजするउतするउतउतउतनहुआहुआ、मैंमैंबहुतधनなりढ़यहूँ、मैं चाहिये। इनभावों को त्यागकर ही गुरू कृपा प्राप्त की जा सकती है।
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गुरूत्व विशुद्ध रहस्यमय ज्ञान है। इसे प्राप्त करने के लिये शिष्यका मन पावन िर्मल होना चाहिये। जोशिषजोजो現家शशश現。
शिष्यताकाकापर्यायहैनवीनता। जोहहहजोकजोजोषण、जोजोजो現計ペルンブス आवश्यकता है कि वह उस मार्ग पर चले जिस पर गुरू उसे चलाये।
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続きを読む 続きを読む 続きを読むजितनेमहかそうとहुयेहैंहुयेहैंउनकेजीवनजीवनकोदेखेतोतोहभिनです。 सम#€€अगअगतथतथ現家तथमेंहहगु業者
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